दीप सिद्धू की मौत और डेरा के मालवा में समर्थन ने पंजाब के समीकरणों को बदल दिया है!

पंजाब विधान सभा चुनावों के अंतिम दो दिनों में समीकरण अचानक से कुछ बदल गए हैं। भगवंत मान को मुख्यमंत्री काचेहरा बनाए जाने के बाद से पंजाब में आम आदमी पार्टी लगातार बढ़त बनाती हुए दिख रही थी। वहीं आपसी कलह और एंटी-इन-कम्बेंसी के दबाव में कांग्रेस संघर्ष करने की स्थिति में खुद को लाने का हर संभव प्रयास कर रही थी, लेकिन अंतिम दो दिनों में हुए घटना क्रमों ने राजनीति समीकरणों के बदल दिया है। पंजाब चुनावों को लेकर अमित शाह ने भीयही टिप्पणी की है कि पंजाब में चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी तो कोई ज्योतिषी ही कर सकता है, क्योंकि वहाँ वोटिंग काफ़ी अलग तरीके से हुई है। आइए उन पर एक-एक कर चर्चा करते हैं और समझने कि कोशिश करते हैं कि आख़िर क्या- क्या हुआ है।

पंजाबी फ़िल्म अदाकार और किसान आंदोलन के समय काफ़ी चर्चा में रहे दीप सिद्धू की सिंघु बोर्डर के पास सड़क हादसेमें मौत हो गई। दीप लगातार राज्यों के अधिक अधिकारों की माँग काफ़ी मुखर होकर करते रहे हैं, यही वो कारण था किकई किसान संगठनों के नेता भी लगातार दीप सिद्धू का विरोध करते रहे हैं। किसान नेताओं का मानना था कि दीप जो मुद्देउठा रहे हैं उसके लिए उन्हें अलग मंच पर बात करनी चाहिए। किसान आंदोलन का लक्ष्य तीन खेती क़ानूनों को रद्दकरवाना है। हाँ तो चलिए अब के संदर्भ में बात करते हैं दीप सिद्धू की मौत का आख़िर क्या असर हो सकता है।

दीप सिद्धू का प्रभाव युवाओं में था या फिर ये कहें कि अब भी है। दीप लगातार सिमरणजीत सिंह मान के प्रचार करते रहेहैं जिनकी पार्टी पंजाब में रेडीकल मानी जाती है। उनका एजेंडा हमेशा से रहा है कि पंजाब अलग देश है और भारतसरकार को इसे अलग देश बना देना चाहिए। मालवा के क्षेत्र में पार्टी का इतना प्रभाव नहीं था लेकिन दीप सिद्धू की मौतके बाद यहाँ स्थिति काफ़ी बदल गयी। जिन गाँव में कभी पार्टी का कभी दफ़्तर नहीं खुला था उस गाँव में युवक पार्टी केझंडे लेकर घूमने लगे। चुनाव के दिन युवाओं का अच्छा ख़ासा समर्थन इस पार्टी को देखने को मिला है। यही युवा इसीक्षेत्र में आम आदमी पार्टी के साथ थे, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। देखना होगा कि आम आदमी पार्टी को आख़िरकितना नुक़सान होगा।

एक अन्य घटना जिसने इन समीकरणों को बदलने में अहम भूमिका निभाई है वो है डेरा सच्चा सौदा। डेरा ने मालवा(पंजाब के दक्षिणी ज़िले) क्षेत्र में अधिकतर जगहों पर अकाली दल और बीजेपी को समर्थन दिया है। मालवा के क्षेत्र मेंडेरा अच्छा ख़ासा प्रभाव रखता है। आम आदमी पार्टी भी इसी क्षेत्र में काफ़ी मज़बूत नज़र आ रही थी। मालवा में हीबदलाव को लेकर एक लहर दिख रही थी जिसमें पुरानी पार्टियों को लेकर ग़ुस्सा था और आप को एक मौक़ा देने की बातकाफ़ी चल रही थी। ऐसे में डेरा का प्रभाव दिखा तो इसका ख़ामियाज़ा आम आदमी पार्टी को भुगतना पड़ेगा।

इन दिनों कुमार विश्वास के बयान ने भी पंजाब में मतदाताओं के मन में आम आदमी पार्टी के लिए सवाल खड़े किए हैं। येसाफ है कि इसका असर शायद उतना देखने को न मिले लेकिन विरोधी पार्टियों के लिए अपने वोटर को इससे एकजुटरखने में ज़रूर मिला है।

इस बार विधान सभा चुनाव बदलाव के लिए होना था जिसमें सबसे बड़ी सत्ता तक पहुँचने कि दावेदार  आम आदमी पार्टीमानी जा रही थी लेकिन किसान संयुक्त समाज मोर्चा के आने से बदलाव पसंद वोट पहले बंट चुका था। वही हाल में हुएघटनाओं ने इसे आम आदमी पार्टी के लिए सत्ता तक पहुँच पाने के सफ़र को अंग्रेज़ी के शब्द सफ़र कर दिया है। ये देखना दिलचस्प होगा कि परिणाम क्या रहता है।लेकिन कांग्रेस के लिए ये उम्मीद की किरण ज़रूर होगी।

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