बजट के दिनों में राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) को लेकर काफी चर्चा होती है। सरकार , अर्थशास्त्री और टीवी चैनलों की डीबेट में बैठने वाले विशेषज्ञों के मुंह से आमतौर पर यह शब्द सुनने को मिलेंगे । राजकोषीय घाटे का आपके जीवन पर क्या असर पड़ता है। इसे जानने से पहले ये समझे की राजकोषीय घाटा होता क्या है। राजकोषीय घाटे का मतलब होता है कि सरकार की आमदन और खर्च का अंतर। अगर किसी सरकार में खर्च ज्यादा है और आमदन कम है तो उस सरकार का राजकोषीय घाटा ज्यादा होता है, तो सवाल ये है कि आखिर इसका आप पर क्या असर पड़ता है।
किसी भी सरकार में अगर राजकोषीय घाटा अगर बढ़ता है तो इसका मतलब है कि सरकार का बजट घाटे में है। इसके चलते सरकार पर दबाव होता है कि वो अपने खर्च में कटौती करे। सरकार का बड़ा खर्च सरकार कर्मचारीओं को वेतन देने, सब्सीडी और अन्य बुनियादी सुविधाएँ देने पर खर्च होता है। ऐसे में सरकार इन खर्चों में कटौती करती है।
लेकिन सरकार कर्मचारीओं के वेतन में कटौती तो नहीं कर पाती ऐसे में उसके पास केवल दो ही अन्य विकल्प बचते हैं। ऐसे में या तो सरकार बुनियादी सहूलतों में कमी करे या फिर मिलने वाली सब्सीडी में कटौती करे।
यानी इसका सीधा मतलब जब अगली बार सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़े या आपको किसी अखबार या टीवी चैनल पर ये दिखे तो समझ जाइए की आपके लिए ये खतरा मंडरा रहा है कि सरकार अब आपको मिलने वाली सब्सीडी में कटौती कर सकती है।
सरकार अपने राजकोषीय घाटे को कम रखना चाहती है, उदारवादी आर्थिक नीतियों का इस पर क्या है असर होता है ? अगले लेख में बताएँगे की आखिर क्या अन्य कारण है।
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