बीते दिन आक्सफैम इंडिया (oxfam india) ने भारत में आय की असमानता (income inequality in india) को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट के आँकड़े फिर आर्थिक समानता का समर्थन करने वालों के लिए निराश भरे हैं । इस रिपोर्ट में उल्लेख है कि भारत की 5 प्रतिशत आबादी के पास 60 प्रतिशत संपत्ति है और नीचे की आधी अबादी के पास देश की कुल संपत्ति का मात्र 3 प्रतिशत है। वहीं एक साल में देश के सबसे अमीर आदमी की संपत्ति में 46 प्रतिशत वृद्धि हुई है। बाकि अधिक आँकड़ों के लिए आप नीचे दिए लिंक पर जा सकते हैँ।
खैर ऊपर लिखे इन आँकड़ों से ये तो साबित हो रहा है कि देश की आर्थिक समृद्दि के लिए देश का सुख चंद लोग ही ले पा रहे है बाकि सब उसी गुरबत में गुजारने के लिए मजबूर हैं। क्योंकि इसी रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि किसी भी देश में रहने वाले गरीब लोगों की संख्या हमारे देश में ही जो कि लगभग 23 करोड़ है।
इसको लेकर अब चर्चा शुरू हो गई है कि आखिर क्या कारण है कि देश में आय की असमानता साल दर साल बढ़ती जा रही है? क्या यह प्राकृतिक नियम है या कोई और कारण भी इसमें अहम किरदार अदा कर रहे है? तो आइए इस पर आगे चर्चा करते हैं...
भारत में आय की असमानता पहले से ही रही है तो आखिर क्या है कि इस रिपोर्ट में जो इस पर चर्चा होने लगी है. इस रिपोर्ट में संपत्ति की असमानता के लिए जिसे जिम्मेदार बताया है वो है भारत की टैक्स व्यवस्था. एक तरफ देश जहाँ प्रत्यक्ष करों में कटौती की है वहीँ दूसरी तरफ अप्रत्यक्ष करों का बोझ भी आम लोगों पर डाला गया है।
साल 2019 में कोर्पोरेट टैक्स को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत किया गया. वहीं नई कंपनीओं को ये छूट दी गई उन्हें केवल 15 प्रतिशत ही कार्पोरेट टैक्स देना होगा। इस कदम से सरकार को काफी बड़ा राजस्व नुकसान हुआ जो कि 15 प्रतिशत के करीब रहा। इस नुकसान की भरपाई भी आखिर कहीं न कहीं से की जानी थी. ऐसे में सरकार ने जीएसटी के रेट में भारी इज़ाफा किया वहीं पैट्रोल-डीजल पर लगने वाले टैक्सों पर बढ़ौतरी की गई.
इसी बीच अब चर्चा शुरू हो गई है कि सरकार उन लोगोँ पर अधिक टैक्स लगाए जो जितना अधिक कमा रहे है। सरकार को भी इस पर अब सोचना होगा कि इसे कैसे लागू किया जाए। इस पर कई अर्थशास्त्रीओं का भी मानना है सरकार प्रत्यक्ष लगने वाले करों में इज़ाफा करे साथ ही उन लोगों पर अधिक कर लगाए जो ज्यादा कमा रहे है। वहीं संपत्ति पर लगने वाले करों को भी फिर से शुरू किया जाए। साथ ही सरकार ये भी सुनिश्चित करे कि इस टैक्स द्वारा एकत्रित पैसे को सरकार द्वारा शिक्षा और स्वस्थ्य के लिए खर्च किया जाए क्योंकि यही वो माध्यम है जो गरीबी से निजात दे सकते हैं.
लेकिन हमें यहाँ ये भी समझना होगा कि भारत में संपत्ति कंर को 2016-17 के बजट में जब इसे बंद किया गया था। इसे बंद करते समय ये तर्क दिया गया था कि इस टैक्स को एकत्रित करने में जितन व्यय होता है उतना तो टैक्स में इकठ्ठा भी नहीं होता। वहीं संपत्ति पर अधिक कर लगाने से अमीर लोग इससे बचेंगे और टैक्स चोरी के नए-नए रास्त देखेंगे। ऐसे में ये देखना दिलचस्प रहेगा कि कैसे इस असमानता से छूट पाई जाए।
लेकिन इसके साथ ही हमें यह भी समझना चाहिए कि आय की असमानता हमारे समाज और राजनैतिक तंत्र के लिए भी घातक साबित होगा। असमानता अपराधों को जन्म देती है और अधिक अमीरों का लोकतांत्रिक संस्थाओँ पर कब्जा करने का खतरा मंडराया रहता है। लेकिन हमें दार्शनिक रूसो के कथन पर को भी पढ़ लेना चाहिए कि जब गरीब कुछ नहीँ खाता तो वो अमीरों को खाता है.
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