शनिवार देर रात, प्रयागराज के काल्विन अस्पताल के बाहर पूर्व सांसद और बाहुबली अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ अहमद की हत्या कर दी गई। इस वारदात को अंजाम तब दिया गया जब अतीक और उसके भाई को जेल से मेडिकल जांच के लिए लाया गया था। जब उन पर गोलियां चलाई गईं तब वे देश के कई बड़े मीडिया चैनलों के पत्रकारों से बात कर रहे थे जिसकी वीडियो तमाम मीडिया चैनलों पर लाइव चल रही थी। वीडियो में देखा जा सकता है कि तीन युवक अचानक से आते हैं और उन दोनों पर गोलियाँ चलाना शुरू कर देते हैं। इस घटना की गंभीरता को देखते हुए उत्तर प्रदेश के अधिकतर जिलों में धारा 144 लगानी पड़ी है।
इस दोहरे हत्याकांड के बाद यूपी में कानून व्यव्स्था पर सवाल उठाए जाने लाजिमी हैं कि आख़िर कैसे किसी व्यक्ति को इस तरह से पुलिस और मीडिया की मौजूदगी में सरेआम मारा जा सकता है। सवाल ये भी उठता है कि आखिर इतनी बड़ी सुरक्षा चूक कैसे हो सकती है, वो भी उस प्रदेश में जहां सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में यह कोई पहली घटना नहीं है जहाँ कानून व्यवस्था पर सवाल उठे हों या फिर पुलिस की कार्रवाईयों पर संदेह किया गया हो।
इस दोहरे हत्याकांड के कुछ दिन पहले ही अतीक अहमद के बेटे असद अहमद और उसके एक साथी का एनकाउंटर किया गया था। इस एनकाउंटर को लेकर विपक्षी पार्टियों समेत कानून के जानकारों द्वारा भी काफी सवाल उठाए जा रहे हैं। वहीं 17 मार्च 2023 को एनडीटीवी द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद अब तक 10 हजार से ज्यादा एनकाउंटर्स किये जा चुके हैं। ऐसे में इस घटना को भी उसी तरह से ही देखा जा रहा है। वहीं एक समुदाय विशेष के प्रति नफरत और हिंसा की घटनायें भी देखने को मिलती रही हैं।
सरकार लगातार न्यायालय के बाहर ही समानांतर त्वरित न्याय की एक ऐसी व्यवस्था बनाए बैठी है जो अपने तरीके से ‘न्याय’ कर रही है। जिसमें संवैधानिक न्याय व्यवस्था को नदारद किया जा रहा है।
एक ओर मुख्यधारा के मीडिया के बड़े हिस्से और सोशल मीडिया पर भी इन कार्रवाईयों को समर्थन मिल रहा है। सोशल मीडिया और न्यूजरूम में जिस तरह से इन्हें सैलिब्रेट किया जा रहा है वह समाज के प्रति और भी चिंता को दर्शाता है। वहीं सत्ताधारी नेता भी अपने बयानों में इन सभी एनकाउंटर्स को जायज ठहराते नज़र आ रहे हैं।
सरकार का काम कानून का राज स्थापित करना है। राज्य में हिंसा का अधिकार किसी के पास नहीं होना चाहिए। लेकिन यहाँ सत्ता की हिंसा के प्रति सक्रियता देश के लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरे में डाल रही है। जो कि लोकतंत्र के विरुद्ध है और लोकतांत्रिक व्यवस्था को गौण करती नज़र आ रही है।
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